ॐ नमः शिवाय:
भगवान शिव की महिमा पद्य में न होने से मन में ग्लानि थी। हिन्दी साहित्य जगत को परिपूर्ण करना उनका दायित्व था। जिसे सब भूले हुए से थे। मैं न कोई साधु हूँ, न ही सन्त और न ही विद्वान। भूतपूर्व सैनिक हूँ। जीवन समाप्त हो रहा है। पद्य में जो कुछ भी कर पाया हूँ वह भकतगणों को समर्पित है। यदि उन्हें पसन्द आया तो अपना प्रयास सफल मानूँगा। त्रुटियाँ बहुत होंगी। बुधजनों से प्रार्थना है कि उसे दूर करने में सहयोग देंगे जो अगले संस्करण में दूर की जायेंगी। यह संस्करण शिवभक्तों को समर्पित है। आशा है स्वीकार करेंगे। भगवान शिव के चरित्र में जो भी साहित्य हमें उपलब्ध हुआ है। उसे वैसा ही पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। भक्तिमय एक-आध शब्द के प्रयोग के अधिकार के मोह को नहीं छोड़ सका हूँ।
---बृजबिहारी लाल शुक्ल (बृजमोहन)
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