शिव स्वरूप
।। महात्म्य ।।
शिव चरित्र पावन अमित, पदमय जो न लखाय।
देवि कवित की शक्ति दो, रचउ बिलम्ब बिहाय।।
शिव भगवान उदार अति, सहजइ होहिं प्रसन्न।
रंचक मात्र प्रयास ते, भक्त होत हैं धन्य।।
शिव मय जगत चराचर भाई। महादेव की सब प्रभुताई।
भारत भूमि भव्य तीरथ सम। शिव स्वरूप राजइ अब उरमम।
त्यम्बक रामेश्वर अरु काशी। बैजनाथ पद मन सुखराशी।
में कामी पातकी अघोरी। हूँ मति हीन कवन गति मोरी ।
बन्दऊँ बुध गण और विप्र हूँ। दें आशीष अपन मंगल हूँ।
जानउँ कवित-कला नहिं रंचक। विश्वनाथ पावन पद बन्दक।
विघ्मेश्वर विनवहुँ बहु भाँती। करहु दूरि सब सुत आराती।
तीरथ सकल विश्व मँह जेई। दें आशीष पूर्ण कृति होई।
ब्रह्मा विष्णु और सुर सारे। पूजि जगतपति होहिं सुखारे।
बासी नैमिष अति प्रिय पावन। पद ललिता जित अमित सुहावन।
Post a Comment